Natasha

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तमस (उपन्यास) : भीष्म साहनी

मैदान के पार मसान था जिसके पीछे दो कोठरियों में एक डोम रहता था। इस समय एक के साथ एक सटी हुई, उजड़ी हुई सी लग रही थीं। किसी भी कोठरी में दीया नहीं टिमटिमा रहा था। डोम रात को शराब पिये हुए चिल्लाया बड़-बड़ाता रहा था। और उसकी आवाज़ मैदान के पार इस कोठरी तक आती रही थी। पर इस वक्त जैसे वह मरा पड़ा था। नत्थू को सहसा अपनी पत्नी की याद आयी, जो इस वक्त आराम से चमारों की बस्ती में सोयी पड़ी होगी। यह संकट मोल न लिया होता तो इस वक्त वह उसके पास होता, उसकी अलस, गदराई देह उसकी बाँहों में होती। अपनी युवा पत्नी को बाँहों में भर पाने की ललक उसे बुरी तरह से बेचैन करने लगी। न जाने कितनी देर तक वह उसकी राह देखती रही होगी। उससे बिना कुछ कहे सुने वह घर से चला आया था। एक ही शाम उससे दूर रहकर वह परेशान हो उठा था।

कच्ची सड़क दायें हाथ को दूर तक जाकर नीचे उतर गयी थी। इस वक्त चाँदनी में वह कितनी साफ़ धुली-धुली लग रही थी। उसके किनारे, एक ओर को हटकर कच्चा कुआँ और उस पर पड़ा उसका चक्कर और माल भी बुरे नहीं लग रहे थे। थोड़ी दूर जाने पर ही यह वीरान इलाका खत्म हो जाता था और कच्ची सड़क शहर को जानेवाली पक्की सड़क से जा मिलती थी। चारों और चुप्पी छायी थी। दूर बायीं और पिगरी की नीचे की इमारत थी जो चाँदनी में चपटे काले डिब्बे सी लग रही थी। दूर दूर तक खाली ज़मीन पड़ी थी जिस पर जगह-जगह कँटीली झाड़ियाँ और छोटे छोटे पेड़ छितरे पड़े थे। दूर, बहुत दूर, फ़ौजी छावनी की बारकें थीं, अलग-अलग, जहाँ तक पहुँच पाने में घण्टों लग जाते थे।

नत्थू की देह शिथिल पड़ गयी थी। उसका मन हुआ वहीं खड़ा-खड़ा मुँडेर पर सिर रखकर झपकी ले ले। कोठरी में से बाहर निकलकर यह जैसे किसी दूसरी दुनिया में आ गया था। स्वच्छ, शीतल हवा और चारों ओर छितरी चाँदनी में उसे अपनी स्थिति पर रुलायी-सी आने लगी। बाहर आकर उसे अपने हाथ में पकड़ा छुरा असंगत-सा लगने लगा। उसका मन हुआ वहाँ  से भाग जाये, कोठरी में झाँककर देखे भी नहीं और भाग जाये। कल सुअर-बाड़े का पूर्बिया ज़रूर इधर से गुजरेगा और कचरा देखकर ही समझ जायेगा कि सुअर कोठरी में होगा और वह उसे हाँककर वहाँ से ले जायेगा।
उसे फिर से अपनी पत्नी की याद सताने लगी। अपनी पत्नी के पास पहुँचकर उसके साथ हौले-हौले बतियाते हुए ही उसके क्षुब्ध व्याकुल मन को चैन मिल सकता था। कब वह झंझट खत्म होगा और कब वह उसके पास चमारों की बस्ती में लौट पायेगा ?

सहसा दूर शेखों के बाग की घड़ी ने तीन बजाये और नत्थू की सारी देह थरथरा गयी। उसकी नज़र उसके हाथ पर गयी जिसमें अभी भी वह छुरा पकड़े हुए था। एक गहरी टीस उसके मन में उठी अब क्या होगा ? वह यहाँ पर खड़ा क्या कर रहा है जबकि सुअर अभी तक नहीं मरा ? जमादार छकड़ा लेकर आया ही चाहता होगा। वह उसे क्या कहेगा, क्या जवाब देगा। आकाश में हल्की-सी पीलिमा घुल गयी थी। पौ फटने वाली थी, और वह अभी तक अपने काम से निबट नहीं पाया था। उसे अपनी स्थिति पर रुलायी आने लगी।

घबराया हुआ सा कोठरी की ओर गया। धीरे से दरवाज़ा खोलकर उसने अन्दर झाँका। कोठरी का दरवाज़ा खोलते ही बदबू का भभूका-सा जैसे उस पर झपटा। लेकिन दीये की रोशनी में उसने देखा कि कोठरी के ऐन बीचो-बीच सुअर खड़ा है, निश्चल सा, मानो घूम-घूमकर थक गया हो, निढाल—सा। किसी अन्त:प्रेरणावश नत्थू को लगा जैसे अब उसे मार गिराना इतना कठिन नहीं होगा। नत्थू ने दरवाजा़ भेड़ दिया और फिर आले के नीचे चुपचाप जाकर खड़ा हो गया और एकटक सुअर की ओर देखने लगा।


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